रविवार, अगस्त 01, 2010

आजादी का जश्न - ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘ का मातम्

सहराबुद्दीन प्रकरण सुर्खियों में है। भारतीय न्यायपालिका का चारों और डंका बज रहा है। कितनी पारदर्शी एंव मानवाधिकारों में  विश्वास रखने वाली न्यायिक व्यवस्था हैं । सरेआम कत्ल करने के माहिर एक ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘ का एनकाउंटर हो गया । सुप्रीम कोर्ट का न्याय........मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिये........ ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  पहले देश का नागरिक है। ऐसे ‘‘ सद्भावी आंतकवादियों‘‘  के होथों बेचारे रोज मारे जाने वाले देशवासी व सैनिक तो देश के नागरिक नहीं देंश पर बोझ हैं । सरकार को उनकी चिंता नहीं है। चिंता तो अफजल गुरू......कसाब ....और जेलों में बंद उन ‘‘ सद्भावी आंतकवादियों ‘‘  की हैं जिन्हे देशवासियांे का सरेआम कत्ल करने का लाइसेस देश के दुश्मन देशों ने दिया हैं और उसको रिव्यू करने का जिम्मा भारत सरकार ने ले रखा है। 

चार आईपीएस, दर्जनों पुलिस अधिकारी, राजनेता शक के दायरे में है। आखिर उन्होने देश की अंशाति को बनाये रखने वाले ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  को मारने की साजिश रची हैं । अंशाति नहीं होगी तो राजनीति कैसे चलेगी ? राजनीति नही तो  भूखे मरने तक की नौबत तक आ  जायेगी .......और भूखे मरने से अच्छा तो देश को मारने की ही साजिश रच डालों ।

आज जिन चार आईपीएस पुलिस वालों की वर्दी पर ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  को मारने का दाग लगाया गया है और यदि वो नहीं मिटा तो किस अधिकारी की इतनी औकात कि वो अफजल व कसाब जैसे ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  केा निरीह देशवासियों पर एके - 47 चलाते हुये देखें और अपनी गन की ओर हाथ भी बढा दे । वैसे भी अब उन्हे अपनी पिस्टल में कारतुस भरने से भी डर लगता होगा ।

वाह रे न्याय व्यवस्था......सबको पता वो आंतकवादी....................हत्या के प्रमाणित जूर्म में अभियुक्त....हफ्ता वसुली का सरगना.......देश के हर मजबूत पक्ष को नेस्तानाबूद कर देने की दिली ख्वाहिश लिये.........यह ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  आज हीरों है।  मसूद अजहर को जेल में रख वापस प्लेन हाइजैक के प्रकरणों को दोहराने के हमारे राजनेता आदी है। मुक्ति मोहम्मद सईद की प्यारी बिटिया रूबिया की जान उन कश्मरियांे  से ज्यादा अहमियत रखती हैं तो रोज जीते और रोज मरते है, पर एक गृहमंत्री की बेटी की जान की कीमत पर पाँच आंतकवादी छोड दिये जाते हैं । 

गुनाह ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘ सहराबुद्दीन का नहीं......हम भारत के नागरिकों का हैं जो ऐसे सपौलों को दुध पिलाने के लिये हर बार राजनेताओं जैसे सपेरों को चुन लेते हैं । अखबारों की सुर्खियों में सहराबुद्दीन का केस मजे से पढते हैं पर यह नहीं सोचते उन अधिकारियों की क्या दशा होगी जो रोज खून के आंसू पी अपनी ईमानदारी की सजा भुगत रहे है।

मान भी लिया कि एनकाउंटर फर्जी था.....पर क्या ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  सहराबुद्दीन के कारनामे भी फर्जी हैं...? नहीं ना! फिर मार दिया तो क्या दोष...........इसमे तो साजिश रचने की भी क्या जरूरत......सरेआम सडक पर कुत्तों से नोंचवा देते.........चील, कौवों से खिलवा देते ........शायद इसे यह जानवर भी खाना पंसद नहीं करते....उनमें भी कही न कही इंसानियत का खून दौड रहा होगा.....यह जानवर भी हमारे राजनेताओं से लाख गुने अच्छे हैं ।

खैर .....बारिश का मजा चाय व पकोडौ‘ के साथ लिजिये देश की क्या सोचना......मुझे भी एक       ‘‘ सद्भावी आंतकवादी‘‘  को श्रद्धांजलि देंने के लिये आयोजित एक शोक सभा में जाना है ...... आजादी के जश्न की शुभकामनांए आपको बाद में दुंगा । 

सादर 
विकास अग्रवाल
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