सोमवार, मई 24, 2010

संस्कारों का सुखापन ही सांस्कृतिक प्रदुषण का जिम्मेदार

साक्षात्कार: हम बिगड़े  नहीं, भटक गये हैं .........................सलिल भट्ट


                   शास्त्रीय संगीत के जरिये भारत की ख्याति को विष्व में फैलाने वाले मोहन वीणा के जनक पं. विष्वमोहन भट्ट् के पुत्र सलिल भट्ट ने अपने पिता की विरासत को सहजने के साथ ही उसमें नवीन प्रयोगों का पुट दे अपनी काबिलियत को सिद्ध किया हैं। अपने पिता की पहचान को कभी भी अपना सहारा नहीं बनानें वाले इस युवा ने कामयाबी के नये आयाम तय किये हैं । 19 तारों वाली सात्विक वीणा का निर्माण इस बात की प्रमाणिकता भी है।


                     स्पिक मैके के विरासत श्रृंखला 2009 में अपनी प्रस्तुतियों के तहत् एक आम युवा को शास्त्रीय संगीत के जरिये भारतीय संस्कृति से आत्मसात कराने का बीडा उठाये इस युवा संगीतज्ञ ने चित्तौड़गढ़ मेंएक खास मुलाकात में अपन विचारों के प्रवाहों का रखा।

पिता की उपलब्धियां और आपका प्रदर्षन..........

                           पिताजी की उपलब्धियां मेरे लिये कोई दबाब नहीं हैं ब्लकि वे तो मेरे लिये एक रचनाधर्मिता को सुनहरा मौका बनकर आती हैं । उन्होंने तो ऐसे आयाम तय कर दिये हैं जिसको छुने के लिये हर पल कुछ अच्छा करने की इच्छा मन में रहती हैं । इसका परिणाम आपके समक्ष 19 तारों वाली सात्विक वीणा का सृजन हैं जो उनके समपर्ण से ली गई सीखों का ही एक नवीन अध्याय है।
शास्त्रीय संगीत को लेकर युवाआंे की नकारात्कता ...............
                    मैं कभी भी यह मानने को तैयार नहीं हुं कि युवा वर्ग शास्त्रीय संगीत को लेकर नकारात्क भाव रखते हैं । वास्तविकता तो यह हैं कि जब हमारे संस्कार ही सुख गये हैं तो युवाओं को दोष देने से क्या फायदा ? युवाओं से ज्यादा तो वो लेाग दोषी हैं जो जिन्हांेने संगीत को झुठी सीमाओं मं बांध कर रखा । पुरानी पीढी को चाहिये था कि वे हमारे परिवेष में ही ऐसी सहतजा उत्पन्न करते कि बच्चें उम्र्र के साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझते और उसके लिये कुछ करने का जज्बा मन में रखते । पर अफसोस वे ऐसा करने में वे असफल रहे ।

पाष्चयात संगीत को लेकर विरोधी भाव ..........
                     कलाएं कौन सी भी हो सभी पुजनीय होती हैं । मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि कि हमे सिर्फ शास्त्रीय संगीत का ही प्रचार करना चाहिये और पाष्चायत संगीत का विरोध। हमे पाष्चायत संगीत के विरोध मंे स्वर को मुखर करने की बजाय जनमानस मंे इस मानसिकता को विकसित करना होगा कि जो अपना नही हैं उसे उतना ही सम्मान दो जितने का वो हकदार हैं । हमारी संस्कृति से हमारा खून का रिष्ता हैं उसे पहचाने और उसे परिवार जैसा मान दे । हम बिगडे नहीं हैं भटक गये हैं और सुबह का भ्ूाला यदि घर लौट आता हैं तो उसे भुला नहीं कहा जाता इस बात को हमें समझना होगा । स्पिक मैके के प्रयास इसी दिषा में एक कदम हैं ।

शास्त्रीय संगीत एंव घरानों के विवाद.......
                     शास्त्रीय संगीत को लेकर किसी भी प्रकार की विवाद की बात करना व्यर्थ हैं । हमारी कलाएं अतुलनीय हैं और हम सब मिलकर इसके संवर्धन का ही प्रयास कर रहंे हैं । हिन्तुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विरासत को सहकर रखने वालों में हमारा नाम आना ही हमारे लिये गौरव की बात हैं ।

विदेषी और भारतीय श्रोताओं में अन्तर ...........
                विदेषी श्रोताओं में एकाग्रता का अद्भुत समन्वयन देखने को मिलता हैं तो भारतीय श्रोताओं में आत्मीयता की मधुर अनुभूति । दोनों ही चीजे कलाकर के लिये तो उत्साहवर्धक ही हैं ।

भविष्य को लेकर .............................

                       मेरी पहली संास से ही संगीत का नाता रहा हैं । मैं भविष्य को लेकर आषान्वित हूँ और और संगीत मैं इस कदर डुब जाना चाहता हूँ कि राग की शुद्धता व समर्पण मेरे मैं समा जाये जिसे सुनने व देखने वाले कह उठे कि क्या राग है।

भट्ट परिवार की विरासत.........
                     इसको लेकर मेरे मन में कोई चिन्ता जैसी बात नहीं हैं । भट्ट परिवार की 500 वर्ष की गौरवमयी संगीत यात्रा की दसवी पीढी के रूप में आप मुझे देख रखे है और इस जिम्मेदारी को संभालने के लिये मेरा 11 वर्षीय पुत्र सात्विक तैयार खडा हैं । आप षायद इस बात से अवगत नहीं हें कि सात्विक 4 वर्ष की अल्पायु में ही 60 रागों व 14 तालों से परिचित होने के कारण अपना नाम लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज करवा चुका हैं । उसका यह हुनर हमें भविष्य के प्रति चिन्तित नहीं करता।

लेखक
विकास अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ मो. 94143 74339 ई मेल: aggrawalvikas@gmail.com

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